
उत्तर प्रदेश के बहराइच ज़िले में स्थित सैय्यद सालार मसूद गाजी की दरगाह पर हर साल लगने वाला ‘जेठ मेला’ इस बार विवादों में फंसा हुआ है। दरगाह प्रबंधन की ओर से हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी क्योंकि प्रशासन ने इस वर्ष मेले की अनुमति नहीं दी।
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पहले 7 मई को सुनवाई हुई, फिर 14 मई की तारीख मिली…अब 16 मई
इस मामले में पहले 7 मई को सुनवाई हुई थी, लेकिन 14 मई की निर्धारित सुनवाई को भी अदालत ने आगे खिसका दिया। अब अगली सुनवाई कल यानी 16 मई को होगी।
प्रशासन का तर्क है कि मेला अनुमति योग्य नहीं है, वहीं दरगाह प्रबंधन इसे धार्मिक अधिकारों का उल्लंघन मानता है।
क्या है पूरा मामला?
सैय्यद सालार मसूद गाजी की दरगाह पर हर वर्ष जेठ माह में एक विशाल मेला लगता है, जिसमें हज़ारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। लेकिन इस साल जिला प्रशासन ने मेला आयोजित करने की अनुमति नहीं दी। इसके खिलाफ दरगाह प्रबंधन ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की शरण ली और याचिका दाख़िल की।
प्रशासन बनाम परंपरा: संवेदनशील संतुलन
प्रशासन का कहना है कि कानून व्यवस्था और अन्य कारणों से अनुमति देना संभव नहीं है, जबकि याचिकाकर्ता इसे धार्मिक स्वतंत्रता पर आघात बता रहे हैं। मामला अब पूरी तरह न्यायालय के विवेक पर है।

“मेले को रोकना न सिर्फ़ धार्मिक भावनाओं से खिलवाड़ है, बल्कि परंपरा की भी अवहेलना है,” – दरगाह प्रबंधन
क्या होगा 16 मई को?
16 मई की सुनवाई पर सबकी निगाहें टिकी हैं। क्या हाईकोर्ट दरगाह प्रबंधन की मांग को जायज़ मानेगा या प्रशासन की आपत्तियों को वरीयता देगा — यह देखना अहम होगा।
धार्मिक आयोजन और कानूनी दायरे के बीच संतुलन की चुनौती
बहराइच का यह मामला सिर्फ एक मेला भर नहीं है, यह धार्मिक अधिकार बनाम प्रशासनिक विवेक का केस बन चुका है। क्या आस्था और परंपरा अदालत में न्याय पा सकेंगी? यह अब 16 मई को स्पष्ट होगा।
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